(राष्ट्रीय मुद्दे) पहला समग्र राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (First Composite National Nutrition Survey)
एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)
अतिथि (Guest): डॉ. नरेश चंद्र सक्सेना (पूर्व सचिव, योजना आयोग), डॉ. सुजीत रंजन (कोएलिशन फॉर फ़ूड एंड न्युट्रिशन के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर)
चर्चा में क्यों?
बीते 8 अक्टूबर को देश का पहला समग्र राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण जारी किया गया। यह सर्वेक्षण स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार और यूनिसेफ द्वारा संयुक्त रूप से जारी किया गया है। इसमें देश के 30 राज्यों के शिशु और किशोरों के पोषण संबंधी स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार किया गया है।
इस रिपोर्ट में न केवल सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का आकलन किया गया है, बल्कि बच्चों और किशोरों में मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल और किडनी की कार्यक्षमता जैसे गैर-संचारी रोगों का भी सर्वे किया गया है।
सर्वेक्षण के प्रमुख तथ्य
समग्र राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण केंद्र सरकार द्वारा संचालित देश का पहला राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण है, जिसमें फरवरी 2016 से लेकर अक्टूबर 2018 तक के आंकड़ों को शामिल किया गया है।
- इस सर्वेक्षण का सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि देश में जन्में दो साल से कम के शिशुओं में मात्र 6.4 फीसदी शिशु ऐसे हैं जिन्हें न्यूनतम स्वीकार्य पोषक आहार मिल पाता है।
- सर्वे में 5-9 साल के आयु वर्ग के 10% बच्चे और 10-19 साल के आयु वर्ग के 10% किशोर प्री-डायबिटीक पाए गए। डायबिटीज के ठीक पहले की स्थिति को प्री-डायबिटीज कहा जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि ध्यान नहीं दिया गया तो अगले दो सालों में इन बच्चों और किशोरों में डायबिटीज होने की प्रबल संभावना है।
- इसी आयु वर्ग में 5% बच्चे और किशोर अधिक वजन (Overweight) यानी मोटापे की समस्या से ग्रसित हैं जबकि अन्य 5% रक्तचाप से पीड़ित हैं।
- पहली बार ऐसा हुआ है कि स्कूली बच्चों में मोटापा और कुपोषण की बीमारी एक साथ पाई गई है। यानी यह कहा जा सकता है कि भारत पोषण के मामले में संक्रमण की स्थिति (Nutritional Transition) से गुज़र रहा है।
- तमिलनाडु और गोवा दो ऐसे राज्य हैं जहां पर किशोरों (0-19 साल के आयु वर्ग) में सबसे अधिक मोटापे की समस्या देखी गई।
- 4 फ़ीसदी किशोरों में उच्च कोलेस्ट्रॉल की समस्या पाई गई।
क्या होता है पोषण और अल्प-पोषण?
कुपोषण: पोषण की ऐसी स्थिति जब व्यक्ति को अपनी आवश्यकतानुसार कम पोषक तत्व मिले या आवश्यकता से अधिक पोषक तत्व मिले, कुपोषण कहलाती है। कुपोषण में अल्पपोषण और अत्यधिक पोषण दोनों शामिल होते हैं।
अल्प-पोषण: कुपोषण की ऐसी स्थिति जिसमें पोषक तत्व गुण व मात्रा में शरीर के लिये काफी नहीं होते यानी एक या एक से ज़्यादा पोषक तत्वों की कमी पायी जाती है, अल्प-पोषण कहलाती है। मसलन आयरन की कमी से एनीमिया होना।
यह सर्वेक्षण राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) से किस प्रकार अलग है?
एनएफएचएस में कमियों को मापने के लिए स्टंटिंग, थकान, अल्प-भार और घरेलू आहार सेवन से जुड़े डेटा एकत्र किये जाते हैं। आपको बता दें कि स्टंटिंग एक ऐसी समस्या होती है जिसमें बच्चों का उनके उम्र के अनुसार विकास नहीं हो पाता।
- इसके अलावा, एनएफएचएस में केवल 1-5 वर्ष के बच्चों और वयस्कों से जुड़े डेटा ही एकत्र किये जाते हैं। इसमें 5-19 वर्ष की आयु वाले स्कूली बच्चों को शामिल नहीं किया जाता, जबकि राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण में इन्हें शामिल किया गया है।
क्या है इस कुपोषण का कारण?
रिपोर्ट में इस कुपोषण का कारण निम्नलिखित कारकों को बताया गया है-
- सामाजिक व्यवस्था में बदलाव,
- आधुनिक भोजन का आकर्षण,
- शहरीकरण,
- जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ी झुग्गियां,
- नवजात को स्तनपान न मिलना और
- शरणार्थी संकट
संविधान में पोषण से जुड़ी क्या व्यवस्था है?
भारत में कुपोषण की स्थिति में पिछले वर्षों में काफी सुधार आया है, लेकिन भारत अभी भी उन देशों में शामिल है जहां विश्व के सबसे अधिक कुपोषित बच्चे रहते हैं।
अनुच्छेद-21: भारत के संविधान का अनुच्छेद-21 हर एक के लिए जीवन और स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार सुनिश्चित करता है। इस अनुच्छेद के तहत उपलब्ध जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार में भोजन का अधिकार शामिल है।
अनुच्छेद-47: संविधान का अनुच्छेद-47 कहता है कि लोगों के पोषण और जीवन स्तर को उठाने के साथ ही जनस्वास्थ्य को बेहतर बनाना राज्य की प्राथमिक जिम्मेदारी है।
कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए सरकार क्या कर रही है?
राष्ट्रीय पोषण रणनीति: साल 2017 की राष्ट्रीय पोषण रणनीति का उद्देश्य 2022 तक भारत को कुपोषण मुक्त देश बनाना है।
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना: भारत सरकार ने मातृत्व सहयोग के मक़सद से प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना शुरू किया है। इस योजना के तहत गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को पहले जीवित जन्म के लिए 6000 रुपए की आर्थिक सहायता प्रदान किया जाता है।
पोषण अभियान: इस अभियान को मार्च 2018 में राजस्थान के झुंझुनू में लॉन्च किया गया था। इसका मकसद, गर्भवती महिलाओं, माताओं व बच्चो के पोषण ज़रूरतों को पूरा करना है। इसके अलावा इसका लक्ष्य बच्चों, महिलाओं में खून की कमी यानी अनीमिया को दूर करना भी है। यह महिला व बाल विकास मंत्रालय का फ्लैगशिप कार्यक्रम है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम: इसका मक़सद लोगों को सस्ती दर पर पर्याप्त मात्रा में बेहतर खाद्यान्न उपलब्ध कराना है ताकि उन्हें खाद्य और पोषण सुरक्षा मिले और वे सम्मान के साथ जीवन जी सकें। इस क़ानून का खास ज़ोर गरीब-से-गरीब व्यक्ति, महिलाओं और बच्चों की जरूरतें पूरी करने पर है।
मध्याह्न भोजन योजना: बच्चों में पौषणिक स्तर में सुधार करने के मक़सद से मध्याह्न भोजन योजना प्रारम्भ किया गया है। इसके तहत हर सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूल के प्रत्येक बच्चे को न्यूनतम 200 दिनों के लिए 8-12 ग्राम प्रतिदिन प्रोटीन और ऊर्जा के न्यूनतम 300 कैलोरी अंश के साथ मध्याह्न भोजन परोसा जाता है।
क्या कहते हैं अन्य आंकड़े?
भूखमरी सूचकांक में 102वें स्थान पर भारत: वैश्विक भूखमरी सूचकांक-2019 में भारत की बदहाल स्थिति साफ़ नज़र आती है। यह सूचकांक बताता है कि देश में कुपोषण, बाल कुपोषण, बाल मृत्युदर और बच्चों में बौनापन की स्थिति चिंतनीय है।
19 करोड़ लोग हर रात भूखे सोते हैं: संयुक्त राष्ट्र के भोजन व कृषि संगठन की एक रिपोर्ट ‘दुनिया में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति-2019’ के मुताबिक़, दुनियाभर में सबसे ज्यादा 14.5 प्रतिशत यानी 19.44 करोड़ कुपोषित भारत में हैं। ये वे लोग हैं जिन्हें दोनों वक्त का भोजन ही नसीब नहीं होता है, इनमें से ज्यादातर को भूखे ही सो जाना पड़ता है।
देश में हर दिन 3000 बच्चे कुपोषण से मर रहे: संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2018 के मुताबिक़ देश में हर दिन 3000 बच्चों की कुपोषण से जुड़ी बीमारियों के चलते मौत हो जाती है। यह हालत तब है जब भारत भैंस का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सब्जी, फल व मछली उत्पादक देश है।
आगे क्या किया जाना चाहिए?
इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के एक अध्ययन के मुताबिक़ स्टंटिंग की समस्या ज़िला स्तर पर अलग-अलग है। लगभग 40% जिलों में स्टंटिंग का स्तर 40% से ऊपर है। उत्तर प्रदेश सूची में सबसे ऊपर है जहां 10 में से छह जिलों में स्टंटिंग की उच्चतम दर है। इस तरह के आँकड़ों को देखते हुए, गर्भावस्था से ही स्वास्थ्य और पोषण कार्यक्रमों के अभिसरण पर कार्य करना चाहिए जब तक कि बच्चा पांच साल की आयु तक नहीं पहुंच जाता। साथ ही, भारत को सामाजिक-व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। कुपोषण को दूर करने के लिए कार्यक्रमों की प्रभावी निगरानी और उनका बेहतर क्रियान्वयन बेहद ज़रूरी है।
- कुपोषण से निपटने के लिए केंद्र और राज्यों के बीच सभी योजनाओं में समन्वय बेहद जरूरी है।
- एक नए अध्ययन में पता चला है कि बच्चों को पर्याप्त पोषण और विविधतापूर्ण आहार देने में शिक्षित मां की भूमिका परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति से अधिक अहम हो सकती है। यानी माँ को शिक्षित किया जाय।